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मकर संक्रांति के दिन गाँव में पतंगबाज़ी का उत्सव था। अजय और उसके दोस्त छत पर इकट्ठा हुए। अजय ने अपनी लाल पतंग निकाली। उसने पतंग को आसमान में उड़ाया। हवा तेज़ थी, और पतंग ऊँची उड़ने लगी। अजय का दोस्त राहुल भी अपनी नीली पतंग लाया। दोनों ने पतंगबाज़ी की प्रतियोगिता शुरू की। अजय की पतंग ने राहुल की पतंग को काट दिया। सभी दोस्त हँसने लगे। छत पर माँ ने गुड़ और तिल के लड्डू रखे थे। बच्चों ने लड्डू खाए और फिर से पतंग उड़ाने लगे। सूरज ढलने तक वे छत पर मस्ती करते रहे। उस दिन की पतंगबाज़ी अजय को हमेशा याद रही।
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